हिंदी प्रचार सभा- शुरुआत
स्वतंत्रता आंदोलन के कालखंड में बेलगाँव शहर बंबई राज्य का एक राजकीय शैक्षिक तथा सामाजिक कार्य का केंद्रबिंदु था। महात्मा गांधीजीने दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार करने के लिए १९१८ में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास की स्थापना की। उर्वरित भारत में हिन्दी का प्रचार करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की स्थापना १९३५ में की। हिन्दी प्रचार द्वारा गांधीजी राष्ट्रीय एकात्मता को बढावा देना चाहते थे।
स्व. देशभक्त गंगाधरराव देशपांडेजी की प्रेरणा से उन के निष्ठ मानसपुत्र स्व. पुंडलीक कातगडेजी ने चपारन के नील सत्याग्रह में भाग लिया। गंगाधररावजी की सलाहपर वहाँ से वे हिन्दी का अध्ययन कर के ही लौटे। उन्ही से प्रेरणा लेकर बेलगाँव शहर में हिन्दी प्रचार कार्य की नींव रखी गई। हिन्दी प्रचार को राजनीति से दूर रखने का प्रमुख रूप से प्रयास किया गया। इसी विचारधारा के फलस्वरूप स्व कु.रा. परांजपे, स्व. भैरुलाला व्यास, भा.वि. पुणेकर, गोविंद रे. अम्मणगी, रामचंद के. नाडगौडा, तथा केरोपंत सप्ले आदि के प्रयत्न से स्व. डॉ. गो.वा. हेरेकरजी की अध्यक्षता में १९४२ में हिन्दी प्रचार सभा, बेलगाँव की स्थापना की गयी।
बेलगाँव जिलेभर में हिन्दी का प्रचार और प्रसार करनेवाली यह एकमेव स्वतंत्र संस्था है।कार्यकर्ताओं का निस्वार्थ योगदान ओर जनता की उदर सहायातासे सरकरसे किसी प्रकार की आर्थिक मदद लिये बिना हिन्दी का प्रचार करनेवाली यह एकमेव संस्था है। द. भा. हिंदी प्रचार समिति, वर्धा महाराष्ट्र रा.भा.सभा, पुणे, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, आदि संस्थाओं द्वारा चलाये जानेवाली हिन्दी परीक्षाओं के लिए अबतक इस संस्थाने लगभग दो लाख छात्रों को पढ़ाने का कार्य किया है।
स्वातंत्र्य पूर्व कालखंड में इस संस्था के कार्य बेलगाँव के नूतन महाविद्यालय तथा महिला विद्यालय में चलता था । उसके बाद हिन्दी प्रचारसभा का कार्यालय किर्लोस्कर रोड पर के एक किराये के मकान में शुरू किया गया। इसी प्रकार शहापूर, टीलकवाडी, येल्लुर में भी हिन्दी. प्रचार सभा का कार्य चलता था। इन विभागों में हिन्दी प्रचारका कार्य स्व.सुमित्राबाई सोहनी, विनायकराव कर्गुप्पीकर, वसंतराव भाद्री, केशवराव कुलकर्णी तथा स्व. लक्ष्मणराव पाटील (येल्लुर) इन्हों ने सम्हाला था। इन विभागों की पाठशाला हायस्कूल में पढ़ाई का कार्य चलता था।
शूरू में परीक्षा के साथ वाचनालय-ग्रंथालय चलाना, हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशित करना, वाक् शक्ती को बढावा देने के लिए वाग्वर्धीनि विभाग शुरु किया गया था। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास का रजत जयंति महोत्सव हमारी संस्था द्वारा १९४४ में मनाया गया। १९४७ के बाद राष्ट्र भाषा प्रचार सभा वर्धा, राष्ट्र भाषा प्रचार सभा इन संस्थाओं की परीक्षाएँ उत्तीर्ण होने से उस समय माध्यमिक स्कूलों में अध्यापक की नोकरी मिल सकती थी। द.भा. हि.प्र.स. मद्रास की विशारद; वर्धा की रा.भा. रत्न; साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की विशारद और सा. रत्न परीक्षाएँ पदविका के समकक्ष मानी जाती है। इन उच्च वर्गों को पढ़ाने का कार्य हमारी संस्थाद्वारा नाममात्र शुल्क लेकर किया जाता था। इन वर्गों को पढ़ाने के लिए हमारी संस्था में उद्य शिक्षित अध्यापक थे। उन में प्रमुख है र.बा. मराठे, प्रा. प्रभाकर देशपांडे, प्र.वा. महाजन, बी. के. नाडगौडा, गो.वि. गुंजीकर, राम शिपुरकर, श्रीमती शशि सं, पाटील, छबुताई मराठे, उषा जोग, रघुनाथ पोटे, शशिकांत पोटे आदि। हमारी संस्थाद्वारा पढ़ाये गये उम्र परीक्षा उत्तीर्ण छात्र दक्षिण महाराष्ट्र, गोवा तथा कर्नाटक के धारवाड और बेलगाँव जिले में अध्यापक का काम कर रहे हैं।
साहित्य-निर्माण
अहिन्दी प्रांतों के लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए हमारी संस्थाद्वारा कुल १४ पुस्तकें प्रकाशित की गई। इन में से स्य, कृ.रा. परांजपे द्वारा लिखित व्याकरण की किताब तत्कालिन बंबई राज्य में पाठ्यपुस्तक के रूप में इस्तेमाल की गई। इनका अनुवाद कनड तथा मराठी भाषाओं में भी किया गया। हमारी संस्था के संस्थापक सदस्य स्व. भेरुलाल व्यासजी एक अच्छे नाटककार थे। उनके नाटक करुणा, बहन का बदला, शैला आदि रंगमंचपर खेले भी जा चुके है। स्व, बा.शि. शिरवलकरजी ने इन नाटकों को दिग्दर्शित किया तो दादासाहेब गळतगेकर वकील तथा सभा के कार्यकर्ताओं ने इन में अभिनय भी किया। प्रसिद्ध सिने अभिनेता स्व. पृथ्वीराज कपूर जब बेलगाँव पधारे थे उस समय इस समिति द्वारा स्वागत तथा उनका सत्कार भी किया गया। स्वः रामबंद के नाडगौडा आदि ने अन्य भाषा के कथाओं का हिन्दी में अनुवाद भी किया था।
हिन्दी शिक्षक सनद विद्यालय (बी.एड. कॉलेज)
उस समय हिन्दी अध्यापकों की माँग को ध्यान में रखते हुए हमारी संस्थाद्वारा हिन्दी शिक्षक सनद विद्यालय (हिन्दी बी.एड . कॉलेज) १९५२ में शुरु किया। ६० छात्रों को नाममात्र शुल्क विद्यालय, रा. के. नाडगौडा, द.पां. साटम, श्री.ह. कुलकर्णी, नारायण म. देवरकर, अ.ल. गंधाडे, शाम दोरगुडे आदी ने पढ़ाई का काम किया।
तप:पूर्ति समारंभ
१९५५ साल में संस्था का तपःपूर्ति बडी धूमधाम से मनाया गया. इस समारोह क अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रभाषा वर्धा के इस समारोह के अध्यक्ष मोहनलाल भट्टजी उपस्थित थे। तत्कालिन बंबई राज्य के राज्यपाल हरेकृष्णद्वारा समारोह का उद्घाटन हुआ।
हिन्दी भवन निर्माण
हिन्दी प्रचार का कार्य व्यापक होने के कारण एक निजी भवन की आवश्यकता महसूस होने लगी। सभा के संस्थापक सदस्य स्व. कु.रा. परांजपे, रा.के. नाडगौडा, भैरूलाल व्यास, भा. वि. पुणेकर तथा स्व गोविंद रे. अम्मणगी इन के परिश्रम से निजी भवन बनाने का कार्य शुरु हुआ। इन पाँच सदस्यों में स्व भेरुलाल व्यास अत्यंत सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता में। उन्हीं के अथक परिश्रम से हिन्दी भवन निर्माण के कार्य ने जोर पकड़ा। वे ही इस के आधार स्तंभ थे। संस्था के कानूनी सलाहकार स्व दादासाहेब गळतगेकर (नाईक) वकील की सलाहपर स्व.भैरुलाल व्यासजी ने विद्यमान खडेबाजार में स्थित एक जमीन ३३०० रुपयों में खरीदी। इस कार्य के लिए एक समिति का गठन हुआ। तत्कालिन बेलगाँव शहर के प्रसिद्ध इंजिनियर गजाननराव देशपांडेजी ने बिना किसी गौरवधन लिए इस इमारत को बांधने के कार्य में बहुमूल्य सहयोग दिया। इस भवन को बनाने के लिए रा.भा.प्र.स. वर्धा, अर्बन को-आप बैंक, गार्डनर्स को-आप, सोसाइटी, स्व. पी. आर. नाईक (खान उद्योजक) तथा बेलगाँव के व्यापारी बंधु और नागरिकों के उदार सहयोग से निधि इकट्ठा की गई। १९५९ में हिन्दी भवन की नीव डाली गई। १९६१ दशहरे के घट स्थापना के दिन इस इमारत में हिन्दी प्रचार सभा का कार्य शुरू हुआ।
बाद में सभापर आर्थिक संकट आया। ठेकेदार की रक्कम चुकाना भी मुश्किल हुआ। इस आर्थिक संकट से संस्था को बाहर निकालने के कार्य में बेलगाँव के मान्यवर दाता हमारी मदद के लिए आगे आये। इन महानुभवों में सभा के तत्कालिन अध्यक्ष वामनराव कलघटगी, उपाध्यक्ष मोहनराव पोतदार, सदाभाऊ परांजपे, नरहर क. पाटणकर, आदि अग्रेसर रहे। आर्थिक कठिनाइयों से झूझते हुए संस्था आगे बढ़ी और आगे चलकर स्व. मोहनराव पोतदार, श्री. शरद बावडेकर, श्री. एस. आर. पाटील, श्री. सुरेश हुंदरे और श्री. नरहर क. पाटणकर जी ने अधिकार की बागडोर हाथ में लेकर विद्यमान कार्यकर्ताओं की मदद से आज का ‘नया हिन्दी भवन’ निर्माण किया।